कहीं कोई भूखा ही मर गया।
एक बच्चा सूखा चावल खाकर रह गया।
और कोई पेट पर गीला कपड़ा बांधे सो गया।
कोई इक प्याला पानी को तरस गया।
वही किसी के शाम का खाना बन गया।
और कोई अनाज के इंतज़ार ही में रह गया।
The views i generate through my blog are personal. But yes, not all the times those views are casual I have a voice, right? So i make use of it to be heard amongst the billions. If you may find my views contradicting to yours, no problem, just a leave a comment. I will try to reach you.
जो है वही दिखाता है,
खुद ही से मिलवाता है,
ये कुछ नही छुपाता है,
आईना सच बताता है।
रोते की हिम्मत बढ़ाता है,
हँसते को और हँसाता है,
अंधेरे में छिप जाता है,
उजाले में छिलमिलाता है।
न झूठा भरोसा दिलाता है,
न सच्चा खेल खिलाता है,
कोई इसमें देख इतराता है,
कोई याद कर मुस्कुराता है।
माशूक की याद दिलाता है,
नज़र पड़ते ही लजवाता है,
अकेले में बहुत बतियाता है,
साथी का साथ निभाता है।
दुल्हन का श्रृंगार करवाता है,
दूल्हे को टाई पहनवाता है,
ये कई सपने सजवाता है,
दिलों का दर्पण बन जाता है।
कभी धनवान कभी फ़कीर बनाता है,
ये कभी-कभार भविष्य भी दिखाता है,
बाबु साहब! ये आईना है, आईना!
अनगिनत राज़ छुपाता है।
सूनो, रुक कर अपनी वह बात बताना,
भैय्या, पहले इक कप चाय पिलाना।
सवेरे-सवेरे ही उस का दिख जाना,
जैसे सुस्त देह में जान आ जाना।
सुर-सुर चुस्की लेते जाना,
संग उसके अखबार पलटते जाना।
दोपहर की नींद से खुद को आज़ाद कराना,
चाय! सुनते ही पहला कप अपना भरवाना।
चाय में कूचा हुआ अदरक पड़ जाना,
पी कर उसको, 'वाह!' निकल जाना।
हर वक्त कोई न कोई बहाना बनाना,
उसी बहाने टपरी पर चाय पीने जाना।
यादव, गोलार, साठे, शेख़ का मिल जाना,
उस इक कप चाय पर सारी बहस सुलझाना।
मेहमान-नवाजी हो या कहीं से थक कर आना,
बिना चाय कुछ नहीं है हो पाना।
इसलिए सब यही कहे, मर्द हो या जनाना,
भैय्या, पहले इक कप चाय पिलाना।
रोज़-रोज़ क्युँ सोचता है कि क्या कर,
बस कर, कुछ कर, खुद को ज़िंदा कर।
अब करुँगा, तब करुँगा, कुछ कर तो सही,
ये अब नहीं आया, वो तब नहीं आएगा,
यू ही सोचते-सोचते ये वक्त बढ़ा जाएगा।
सोचता है तो सही सोच, कुछ और सोच, क्या करेगा?
और जो सोच लिया, तो कर वही, रुका क्या करेगा।
बढ़ेगा तभी जब लड़ेगा, पर तु खड़ा ही लड़ सकेगा?
लड़-झगड़ और पार कर, कर-कर कुछ काम कर।
उसने कहा, उससे सुना, कहा-सुना, क्या सुना, ठीक सुना?
अब बस कर सुनना, अब काम कर जो सब सुने।
रोज़-रोज़ क्युँ सोचता है कि क्या कर,
बस कर, कुछ कर, खुद को ज़िंदा कर।
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Courtesy: Playing It Cool |