जो है वही दिखाता है,
खुद ही से मिलवाता है,
ये कुछ नही छुपाता है,
आईना सच बताता है।
रोते की हिम्मत बढ़ाता है,
हँसते को और हँसाता है,
अंधेरे में छिप जाता है,
उजाले में छिलमिलाता है।
न झूठा भरोसा दिलाता है,
न सच्चा खेल खिलाता है,
कोई इसमें देख इतराता है,
कोई याद कर मुस्कुराता है।
माशूक की याद दिलाता है,
नज़र पड़ते ही लजवाता है,
अकेले में बहुत बतियाता है,
साथी का साथ निभाता है।
दुल्हन का श्रृंगार करवाता है,
दूल्हे को टाई पहनवाता है,
ये कई सपने सजवाता है,
दिलों का दर्पण बन जाता है।
कभी धनवान कभी फ़कीर बनाता है,
ये कभी-कभार भविष्य भी दिखाता है,
बाबु साहब! ये आईना है, आईना!
अनगिनत राज़ छुपाता है।
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