Friday 19 January 2018

इक कप चाय

सूनो, रुक कर अपनी वह बात बताना,
भैय्या, पहले इक कप चाय पिलाना।

सवेरे-सवेरे ही उस का दिख जाना,
जैसे सुस्त देह में जान आ जाना।

सुर-सुर चुस्की लेते जाना,
संग उसके अखबार पलटते जाना।

दोपहर की नींद से खुद को आज़ाद कराना,
चाय! सुनते ही पहला कप अपना भरवाना।

चाय में कूचा हुआ अदरक पड़ जाना,
पी कर उसको, 'वाह!' निकल जाना।

हर वक्त कोई न कोई बहाना बनाना,
उसी बहाने टपरी पर चाय पीने जाना।

यादव, गोलार, साठे, शेख़ का मिल जाना,
उस इक कप चाय पर सारी बहस सुलझाना।

मेहमान-नवाजी हो या कहीं से थक कर आना,
बिना चाय कुछ नहीं है हो पाना।

इसलिए सब यही कहे, मर्द हो या जनाना,
भैय्या, पहले इक कप चाय पिलाना।

No comments:

Post a Comment