Tuesday 30 January 2018

आईना

जो है वही दिखाता है,
खुद ही से मिलवाता है,
ये कुछ नही छुपाता है,
आईना सच बताता है।

रोते की हिम्मत बढ़ाता है,
हँसते को और हँसाता है,
अंधेरे में छिप जाता है,
उजाले में छिलमिलाता है।

न झूठा भरोसा दिलाता है,
न सच्चा खेल खिलाता है,
कोई इसमें देख इतराता है,
कोई याद कर मुस्कुराता है।

माशूक की याद दिलाता है,
नज़र पड़ते ही लजवाता है,
अकेले में बहुत बतियाता है,
साथी का साथ निभाता है।

दुल्हन का श्रृंगार करवाता है,
दूल्हे को टाई पहनवाता है,
ये कई सपने सजवाता है,
दिलों का दर्पण बन जाता है।

कभी धनवान कभी फ़कीर बनाता है,
ये कभी-कभार भविष्य भी दिखाता है,
बाबु साहब! ये आईना है, आईना!
अनगिनत राज़ छुपाता है।

Friday 19 January 2018

इक कप चाय

सूनो, रुक कर अपनी वह बात बताना,
भैय्या, पहले इक कप चाय पिलाना।

सवेरे-सवेरे ही उस का दिख जाना,
जैसे सुस्त देह में जान आ जाना।

सुर-सुर चुस्की लेते जाना,
संग उसके अखबार पलटते जाना।

दोपहर की नींद से खुद को आज़ाद कराना,
चाय! सुनते ही पहला कप अपना भरवाना।

चाय में कूचा हुआ अदरक पड़ जाना,
पी कर उसको, 'वाह!' निकल जाना।

हर वक्त कोई न कोई बहाना बनाना,
उसी बहाने टपरी पर चाय पीने जाना।

यादव, गोलार, साठे, शेख़ का मिल जाना,
उस इक कप चाय पर सारी बहस सुलझाना।

मेहमान-नवाजी हो या कहीं से थक कर आना,
बिना चाय कुछ नहीं है हो पाना।

इसलिए सब यही कहे, मर्द हो या जनाना,
भैय्या, पहले इक कप चाय पिलाना।

Wednesday 10 January 2018

खुद को ज़िंदा कर

रोज़-रोज़ क्युँ सोचता है कि क्या कर,
बस कर, कुछ कर, खुद को ज़िंदा कर।

अब करुँगा, तब करुँगा, कुछ कर तो सही,
ये अब नहीं आया, वो तब नहीं आएगा,
यू ही सोचते-सोचते ये वक्त बढ़ा जाएगा।

सोचता है तो सही सोच, कुछ और सोच, क्या करेगा?
और जो सोच लिया, तो कर वही, रुका क्या करेगा।

बढ़ेगा तभी जब लड़ेगा, पर तु खड़ा ही लड़ सकेगा?
लड़-झगड़ और पार कर, कर-कर कुछ काम कर।

उसने कहा, उससे सुना, कहा-सुना, क्या सुना, ठीक सुना?
अब बस कर सुनना, अब काम कर जो सब सुने।

रोज़-रोज़ क्युँ सोचता है कि क्या कर,
बस कर, कुछ कर, खुद को ज़िंदा कर।

Tuesday 9 January 2018

जिन्दगी

कुछ रूक सी गई है जिन्दगी,
नई सुबह नही, पुरानी शाम हो गई है जिन्दगी।

पुराने ऐल्बम में उस तस्वीर सी,
फिके-पीले, कोडैक कागज़ के चौकोन टुकड़े जैसी,
कुछ धुंधला-सी गई है जिन्दगी।

चलता पंखा या ए-सी ऑफिस का,
दोनों की ही हवा ठंडा नही कर पा रही,
कुछ गर्मा-सी गई है जिन्दगी।

ट्रेफिक हो या लाइन ए-टी-एम की,
आगे बढ़ने का नाम ही नही ले रही है,
कुछ उक्ता-सी गई है जिन्दगी।

खबर अच्छी हो या कोई बुरी,
कोई प्रतिक्रिया भी व्यक्त नही कर पा रही है,
कुछ बौरा-सी गई है जिन्दगी।