Wednesday 10 January 2018

खुद को ज़िंदा कर

रोज़-रोज़ क्युँ सोचता है कि क्या कर,
बस कर, कुछ कर, खुद को ज़िंदा कर।

अब करुँगा, तब करुँगा, कुछ कर तो सही,
ये अब नहीं आया, वो तब नहीं आएगा,
यू ही सोचते-सोचते ये वक्त बढ़ा जाएगा।

सोचता है तो सही सोच, कुछ और सोच, क्या करेगा?
और जो सोच लिया, तो कर वही, रुका क्या करेगा।

बढ़ेगा तभी जब लड़ेगा, पर तु खड़ा ही लड़ सकेगा?
लड़-झगड़ और पार कर, कर-कर कुछ काम कर।

उसने कहा, उससे सुना, कहा-सुना, क्या सुना, ठीक सुना?
अब बस कर सुनना, अब काम कर जो सब सुने।

रोज़-रोज़ क्युँ सोचता है कि क्या कर,
बस कर, कुछ कर, खुद को ज़िंदा कर।

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