Tuesday 9 January 2018

जिन्दगी

कुछ रूक सी गई है जिन्दगी,
नई सुबह नही, पुरानी शाम हो गई है जिन्दगी।

पुराने ऐल्बम में उस तस्वीर सी,
फिके-पीले, कोडैक कागज़ के चौकोन टुकड़े जैसी,
कुछ धुंधला-सी गई है जिन्दगी।

चलता पंखा या ए-सी ऑफिस का,
दोनों की ही हवा ठंडा नही कर पा रही,
कुछ गर्मा-सी गई है जिन्दगी।

ट्रेफिक हो या लाइन ए-टी-एम की,
आगे बढ़ने का नाम ही नही ले रही है,
कुछ उक्ता-सी गई है जिन्दगी।

खबर अच्छी हो या कोई बुरी,
कोई प्रतिक्रिया भी व्यक्त नही कर पा रही है,
कुछ बौरा-सी गई है जिन्दगी।

No comments:

Post a Comment